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SHABARI

SHABARI

Image source - Google । image by - dailyo.in
Shabari is a very simple girl of the nation of Shabar. The people's of Shabar nation are usually ugly. But Shabari was so ugly. That no man in Shabar nation was willing to marry her. So her parents were very worried about that. After much searching, a boy from Shabar nation was found and Shabari's marriage was settled. Shabari's parents arranged the marriage and sent them away in the night. So that boy could not see Shabari, well in the dark. So at night, the boy started walking first, and Shabari was follow him. In this way they reached 'Dandakvan'(a forest name). Gradually the sun rose, and the boy thought " I couldn't see my wife well at night, let's see how my wife looks. He turned around and looked at Shabari in amazement. He thought " she was so ugly, she is certainly not a human, she may be a demon, and she will eat me ". He Thinking this and immediately run away from there. Shabari was left alone in that 'Dandakvan'. She had moved so far, from her father house, that she did not know where the path was. Even her father-in-law's house was unknown. So where will she go. The sages, whose lived in 'Dandakvan', they did not like Shabari, and did not even touch her shadow, because Shabari was low caste girl. There lived an old sage, name "Matang muni", who felt pity when he saw Shabari. He kindly allowed Shabari to stay in his ashram (Hermitage). The others sages objected to this, but Matang muni did not listen to them. He said to Shabari in very affectionately - " Mother, don't afraid I am here, you will be with me. Just as a child is cherished by the father, so is Shabari cherished by the Matang Muni. Shabari loves to serve. The other's sages did not like Shabari, but shabari did all their works secretly. When everyone was asleep at night, then Shabari get up quietly , and she was sweep this road, which road the sages are used to going to bathe at Pampa sarovar ( Pampa sarovar is a name of a pond ). Every day Shabari was secretly brings wood for cooking the sages. Finally this day is come. It is time to die of Matanga muni. At the time of death of mother and father, just like the child starts crying anxiously, Shabari also started crying for Matanga muni. Matanga muni said - "Mother, Don't worry, one day lord Ram will come to you. After talking this he died. From then Shabari waited for lord Ram. Waiting is a very high level pursuit. At night, when the animals would go through the jungle, she would go outside and see. Shabari think, it is the sound of Lord Ram's coming. Every day Shabari decorate the front of the cottage with flowers and brings various sweet fruits. She taste every fruit and keep the juicy and succulent fruits for lord Ram. If sree Ram did not come that day, she would bring fresh fruit again the next day. She was very excited that when Sree Ram would come then she feed him sweet fruits. After waiting much of years, Shabri's wait finally came to an end. Matanga Muni's words are true. Lord Ram come, and entered Sabari's hut. The others great sages began to pray to Ram, that Ram would come to their hut. But Lord Ram said he would go to Sabari's hut. Just as Shabari had a desire to meet God, like God had a desire to meet Shabari. It is the nature of God that he bestows his grace on those, who worship him. Shabari's joy had no bounds. She fell at the feet of God. She brought water and give him a beautiful seat for sitting. Then she brought the fruits and began to feed the Lord, with her own hands. Just as a mother feeds her child with her own hands, Shabari began to feed him with affection. And lord Ram began to eat the fruit with great joy and love.
শবর জাতির এক অতি সাধারণ মেয়ে শবরী। শবর জাতির মানুষেরা সাধারণত কুরূপ হয়। তাদের মধ্যে শবরী এতই কুশ্রী ছিল যে শবরজাতির মধ্যেও কোনাে পুরুষ তাকে বিয়ে করতে রাজি ছিল না। মা-বাবা অত্যন্ত চিন্তিত ছিল যে কীভাবে তারা মেয়ের বিয়ে দেবে। অনেক অনুসন্ধানের পর শবরজাতির একটি ছেলে পাওয়া গেলে শবরীর বিয়ে ঠিক হল। শবরীর মা বাবা বিবাহ সম্পন্ন করে রাত্রের মধ্যেই তাদের রওনা করিয়ে দিল , যাতে ছেলেটি অন্ধকারে শবরীকে ভালােভাবে দেখতে না পায়। ছেলেটি শবরীকে নিয়ে সেই অন্ধকারেই রওনা হল, আগে ছেলেটি চলতে লাগল, পিছনে শবরী। এইভাবে হাঁটতে হাঁটতে তারা দণ্ডকবনে এসে পৌঁছাল। ক্রমশ ভাের হয়ে সূর্যোদয় হল। ছেলেটি ভাবল রাত্রে বউকে ভালাে করে দেখতে পাইনি, এখন একবার দেখি তাে, আমার বউ কেমন দেখতে। সে পিছন ফিরে শবরীকে দেখে আঁতকে উঠল, সে ভাবল এত কুৎসিৎ, এ নিশ্চয়ই মানুষ নয়, কোনাে ডাকিনী বা রাক্ষসী হবে, আমাকে খেয়ে ফেলবে। এই ভেবে সে তৎক্ষণাৎ সেখান থেকে চম্পট দিল। বেচারি শবরী একলা সেই দণ্ডকবনে পড়ে রইল। সে তার পিতৃগৃহ থেকে এত দূরে চলে এসেছিল যে পথ কোথায় তাও জানত না, শ্বশুড়বাড়িও অজানা। কাজেই কোথায়ই বা সে যাবে? দণ্ডকবনে যে সব মুনি-ঋষিরা থাকতেন তারা শবরীকে অচ্ছুৎ জেনে গালিগালাজ করতেন এবং তার ছায়াও মাড়াতেন না। সেই বনেই মতঙ্গ নামে একজন বৃদ্ধ ঋষি থাকতেন, শবরীকে দেখে তার মনে করুণা হল। তিনি দয়া করে শবরীকে তার আশ্রমে থাকতে দিলেন। অন্য ঋষিরা এই নিয়ে অনেক আপত্তি করলেও মতঙ্গ ঋষি তাদের কোনাে কথা শুনলেন না। উনি অত্যন্ত স্নেহ সহকারে শবরীকে বললেন—“ মা, তুমি ভয় পেয়াে না। আমি তাে আছি, তুমি আমার কাছেই থাকবে। বাবার কাছে যেমন সন্তান আদরের সঙ্গে থাকে, শবরীও তেমনই মতঙ্গ ঋষির কাছে সাদরে স্থান পেল। শবরী সেবা করতে খুব ভালােবাসত। অন্যান্য মুনি-ঋষিরা শবরীকে দেখে গালমন্দ করলেও সে লুকিয়ে লুকিয়ে তাদের সব কাজ করে দিত। রাত্রে যখন সকলে ঘুমিয়ে পড়ত, তখন শবরী চুপি চুপি উঠে, যে রাস্তা দিয়ে মুনিরা পম্পা সরােবরে স্নান করতে যেতেন, সেই রাস্তা ঝাড়ু দিয়ে পরিষ্কার করে রাখত। যেখানে কাকর, ইটের টুকরাে পড়ে থাকত, সেখানে ঝুড়ি করে বালি এনে বিছিয়ে দিত, যাতে কারাে পায়ে না লাগে। ঋষিদের যজ্ঞ করার এবং রান্না করার জন্য কাঠ-কুটো জড়াে করে রাখত। কেউ দেখতে পেলে সে পালিয়ে যেত। শবরী ভয় পেত এই ভেবে যে তাকে দেখলে বা ছুলে ঋষিরা হয়তাে অশুচি হয়ে যাবেন। এইভাবে মুনি-ঋষির সেবা করে তার দিন কাটতে লাগল। অবশেষে সেই দিনটি এল যা সকলেরই অনিবার্য। মতঙ্গ ঋষির দেহত্যাগের সময় হল । মা-বাবার মৃত্যুর সময় যেমন সন্তান অধীর হয়ে কাদতে থাকে, শবরীও মতঙ্গ ঋষির জন্য কাঁদতে লাগল, বেচারির আর তাে কেউ নেই। মতঙ্গ ঋষি বললেন— “ মা, তুমি চিন্তা কোরাে না। একদিন ভগবান রাম তােমার কাছে আসবেন"। এই বলে তিনি দেহত্যাগ করলেন। শবরী তারপর ভগবান রামের জন্য প্রতীক্ষা করতে থাকলেন। প্রতীক্ষা খুব উচ্চস্তরের সাধনা। এতে ভগবানের বিশেষ চিন্তা করা হয়। ভগবানের সাধন ভজন করা এত সজীব নয়, প্রতীক্ষা যত সজীব সাধনা। রাত্রে কোনাে জন্তু জানােয়ার জঙ্গল দিয়ে চলে গেলে সেই শব্দকে ভগবান রামের আসার শব্দ মনে করে বাইরে গিয়ে দেখত। প্রতিদিন শবরী কুটিরের সামনে ফুল দিয়ে সুন্দর করে সাজিয়ে রাখত আর নানারকম সুমিষ্ট ফল এনে রাখত। ফলগুলির কয়েকটি আবার নিজে চেখে দেখত সেগুলি রসাল এবং সুমিষ্ট কিনা। সেইদিন রাম না এলে আবার পরদিন তাজা ফল এনে রাখত। তার মনে খুব উৎসাহ ছিল যে রাম এলে তাকে ফলমূল আহার করাবে। এইভাবে প্রতীক্ষা করতে করতে অবশেষে শবরীর প্রতীক্ষার অবসান হল। মতঙ্গ মুনির বাক্য সত্য হল, ভগবান রাম শবরীর কুটিরে পদার্পণ করলেন। অন্যান্য বড় বড় মুনি-ঋষিগণ প্রার্থনা করতে লাগলেন যেন রাম তাদের কুটিরে আসেন। কিন্তু ভগবান রাম বললেন তিনি শবরীর কুটিরেই যাবেন। শবরীর মনে যেমন ভগবানের সঙ্গে মিলিত হওয়ার জন্য আকাঙ্ক্ষা ছিল, ভগবানের মনেও তেমনই শবরীর সঙ্গে দেখা করার আগ্রহ ছিল। ভগবানের স্বভাবই হল যে, তাকে যে যেমনভাবে ভজনা করে, তিনিও তাকে সেইভাবেই অনুগ্রহ করে থাকেন। শবরীর আনন্দের সীমা রইল না। সে ভগবানের পদপ্রান্তে গিয়ে পড়ল। ঘটি করে জল এনে শ্রীরামের চরণ ধুয়ে দিল আর সুন্দর আসন পেতে তাকে বসাল। তারপর ফল এনে নিজের হাতে ভগবানকে ফল খাওয়াতে লাগল। শবরী দেখতে খুবই দীর্ঘাকৃতি, তুলনায় রাম যেন ছােট ছেলে। মা যেমন তার সন্তানকে নিজ হাতে খাইয়ে দেয়, শবরীও তেমনই আদর করে রামকে ফল খাওয়াতে লাগল আর রামও অত্যন্ত আনন্দ ও প্রীতি সহকারে সেই ফল খেতে লাগলেন।
शबरी शाबर जाति की एक बहुत ही साधारण लड़की है। शबोर जाति के लोग आमतौर पर कुरूप होते हैं। उनमें शबरी इतनी कुरूप थी कि शाबरजाति का कोई भी पुरुष उससे विवाह करने को तैयार नहीं था। शबरी के माता-पिता बहुत चिंतित थे इस बात से। बहुत खोज के बाद, शाबरजती का एक लड़का मिला, और शबरी की शादी तय हो गई। शबरी के मा-बाप ने शबरी को उस लड़के के साथ शादी करवा दिया, और उन्हें आधी रात में विदाई कर दिया, ताकि लड़का, सबरी को अंधेरे में अच्छी तरह से न देख सके। लड़का शबरी को लेकर अंधेरे में निकल पड़े। लड़के ने पहले चलना शुरू किया, उसके बाद सबरी। इस तरह वे पैदल दंडकबन पहुँचे। धीरे-धीरे सूरज उठ आया। लड़के ने सोचा कि वह रात में अपनी पत्नी को अच्छी तरह से नहीं देख पाए , अब देखते हैं कि मेरी पत्नी कैसी दिखती है। उसने मुड़कर सबरी को देखकर चौंक गया। उसे लगा कि यह बहुत बदसूरत है, यह कोई इंसान नहीं हो सकता, यह एक चुड़ैल या दानव होगा, यह मुझे खा जाएगा। यह सोचकर वह तुरंत वहां से भाग गया। बेचारी सबरी उस दंडकबन में अकेली रह गईं। वह अपने पिता के घर से इतनी दूर चला गया था कि उसे पता नहीं था कि रास्ता कहाँ है - यहाँ तक कि उसके ससुर का घर भी अनजान था। तो वह कहां जाएगा? दंडकबन में रहने वाले सभी ऋषि सबरी को यह जानकर गाली देते थे कि वह निम्न जाति का थी और उसकी परछाई भी नहीं छूता था। उस जंगल में मतंग नाम का एक बूढ़ा ऋषि रहता था। सबरी को देखकर उसे दया आ गया। उन्होने कृपा करके सबरी को अपने आश्रम मे रहने दिया। अन्य ऋषियो ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन मतंग ऋषि ने उनके बात नहीं माना। उसने सबरी से बहुत प्यार से कहा: “मा, तुम भयभीत नहीं हो। मैं वहां हूं, तुम मेरे साथ रहोगे। जिस प्रकार बच्चे को पिता द्वारा पालीत किया जाता है, उसी प्रकार सबरी को मातंग ऋषि पालन किया था। सबरी को सेवा करना पसंद था। अन्य ऋषि और संत सबरी को गाली देते थे, लेकिन वह उन ऋषियों का सारा काम चुप कर कर देती थी। जब रात में सब सो जाते थे, तब सबरी छुपकर अकेली उठती थी, और उस रास्ता झाड़ू लगाती थी। जिस रास्ते से ऋषियों पम्पा सरोवर में नहाने जाते थे। ऋषिओके खाना पकाने के लिए सुखा हुआ लकड़ी ढूंढ के रखती थी। अगर कोई उसे देखता तो वह भाग जाती थी। सबरी को डर था कि ऋषि अशुद्ध हो सकते हैं यदि उसे देखते या छूते हैं। इस प्रकार मुनि-ऋषि की सेवा में अपने दिन बिताने लगे। अंत में वह दिन आया जो सभी के लिए अपरिहार्य है। मतंग ऋषि के मरने का समय हो गया है। माता और पिता की मृत्यु के समय, जैसे कोई बच्चा रोने लगता है, वैसे ही सबरी भी मातंग ऋषि के लिए रोने लगी. ऋषि मतंग ने कहा: “ मा, आप चिंता न करें, एक दिन भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे "। यह कहने के बाद वह मर गए। सबरी ने तब से भगवान राम की प्रतीक्षा की। प्रतीक्षा एक बहुत ही उच्च स्तर की खोज है। ईश्वर से प्रार्थना करना उतनी जीवंत खोज नहीं है, जितनी प्रतीक्षा में है । रात में, जब जानवर जंगल में जाते थे, तो वह बाहर जाती थी। क्योंकि वह सोचती थी कि यह भगवान राम के आने का शब्द था । हर दिन शबरी फूलों से झोपड़ी के सामने सजा दी थी, और विभिन्न मीठे फल लाते थे। कुछ फलों को थोड़ा-थोड़ा खा कर देखती थी कि क्या वे रसदार और रसीले हैं ? यदि राम उस दिन नहीं आते, तो वे अगले दिन भी ताजा फल लाते। वह बहुत उत्साहित था कि अगर राम आया तो वह उसे फल खिलाएगा। इस तरह इंतजार करने के बाद आखिरकार शबरी का इंतजार खत्म हुआ। मतंग मुनि के वचन सत्य हुए, भगवान राम ने सबरी की झोपड़ी में प्रवेश किया। सब ऋषियों ने प्रार्थना करने लगे, ताकि राम उनके झोपड़ी में जाए। लेकिन भगवान राम ने कहा कि वह सबरी की झोपड़ी में जाएंगे। जिस तरह सबरी को ईश्वर से मिलने की इच्छा थी, उसी तरह ईश्वर को सबरी से मिलने की इच्छा थी। यह ईश्वर का स्वभाव है कि वह उन लोगों पर अपनी कृपा बरसाता है जो उनकी पूजा करते हैं । शबरी के आनंद को कोई सीमा नहीं थी। वह भगवान के चरणों में गिर गया। वह पानी लाया और श्रीराम के पैर धोए और उन्हें एक सुंदर आसन में बैठाया। फिर वह फल लाया और अपने हाथों से प्रभु को खिलाने लगा। जिस तरह माँ अपने हाथों से अपने बच्चे को खाना खिलाती है, उसी तरह सबरी ने भी राम को स्नेह से फल खिलाया। और राम ने भी उस फल को बड़े ही आनंद और प्यार से खाना शुरू किया।

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