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The frog

THE FROG

Image source - pinterest। image by - Adalia
King Dasaratha of Ayodhya, had four sons - Ram, laxman, varat, and shatrughan. The elder son sree Ram was voluntarily went to exile along with wife 'sita' and brother 'laxman', for his mother 'kaikayi'. One day they were walking through the forest path. They were very thirsty. In that way they reached near at 'Pampa sarovar' (a pond name). They looked, the environment of the 'sarovar' is so beautiful. There were beautiful flowering trees around the pond. There were some duck, they played in there, and some of them are drink water from the pond. Also the pond water were so clean and pure. So sree Ram was decided that, they drink water from this pond and after drink they would rest here for few hours. So, Ram lowered the bow from his shoulder and put the bow in the sand. After drinking water from that pond, they rested under a tree for few hours. After resting, when Sree Ram lifted his bow from the sand, he saw there is some blood in his bow. Quickly Ram called his brother - " brother laxman, come here fast, I think an innocent life is killed by me", laxman came fast and started digging the sand. They saw a frog lying there and there was blood on his body. After seeing this, tears came out from Ram's eyes. Sree Ram told to the frog - " why didn't you called, when you caught by snake's, then you called loudly. So why you didn't called now ". The frog replied - " o my lord Ram, when snake caught me, then i called you ' ram save me, Ram save me'. But when I see, Ram is killing me, so no one in the world who can save me. After think this, I didn't called.
অযোধ্যার রাজা দশরথের ছিল চার ছেলে, রাম, লক্ষন, ভরত এবং শত্রুঘ্ন। পিতার দেওয়া কথার মান রাখতে শ্রী রাম, স্ত্রী সীতা ও ভাই লক্ষন সহিত ১৪ বছরের জন্য বনবাসে চলে গেলেন। একদিন শ্রী রাম, সীতা, ও লক্ষন, বনের পথ ধরে হাঁটছিলেন, তাহারা তিনজনেই ছিলেন খুবই তৃষ্ণার্থ। এভাবে চলতে চলতে তাহারা পম্পা সরােবরের কাছে পৌঁছালেন, সরােবরের কাছে পৌঁছে তাহারা দেখলো, সরোবরের কাছে কিছু হাঁস জল পান করছে ও খেলছে, সরোবরের চারপাশটা সুন্দর সুন্দর বনোফুলে ভর্তি, তারা যেন স্থানটির সৌন্দর্য দ্বিগুণ করে ধরে রেখেছে। সরোবরের চারিদিকে ছিল বালি, যা ছিল কচি কচি ঘাসে ঢাকা। তাহারা স্থির করলো যে তাহারা এই সরোবরে জল পান করার পরে, একবেলা এই মনোরম স্থানে বসে বিশ্রাম নেবে। শ্রী রাম জল পানের উদ্দেশ্যে সরোবরের দিকে এগিয়ে গেলেন, এবং কাঁধ থেকে ধনুকটি নামিয়ে পাশের বালিতে গেঁথে রেখে সরোবরে জল পান করলেন। জল পান করার পরে তাহারা বিশ্রাম নিলেন। বিশ্রাম নেওয়ার পরে যখন শ্রী রাম বালি থেকে ধনুকটি তুললেন, তখন দেখলেন তাতে রক্ত লেগে আছে। তা দেখে রাম তৎক্ষণাৎ তার ভাইকে ডাকলেন - " ভাই লক্ষণ শীঘ্র এখানে এসো মনে হয় আমার দ্বারা কোন জীব হিংসা হয়ে গেল " । লক্ষণ দৌড়ে এলো এবং বালি সরিয়ে দেখলো, একটি ব্যাঙ রক্তাক্ত হয়ে পরে রয়েছে । রামের চোখ দিয়ে অশ্রু বেরিয়ে এল, এবং বেদনা বিভূর হয়ে রাম বললেন - " একবারও ডাকতে পারলে না, যখন লতায় ধরে (সাপে ধরে) তখন তো খুব ডাকো। উত্তরে ব্যাঙ বলল - " হে রাম যখন সাপে ধরে তখন এই বলে ডাকি যে, ' রাম রক্ষা করো, রাম রক্ষা করো '। কিন্তু যখন দেখলাম যে রাম স্বয়ং আমাকে মারছে, তখন আমি কাকে ডাকবো। যখন স্বয়ং ত্রিভুবনেশ্বর আমাকে মারছে, তখন ত্রিভুবনে এমন কে আছে যে আমাকে রক্ষা করতে পারে। এই ভেবে আমি আর ডাকি নি"।
अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र थे - राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। बड़ा बेटा श्रीराम माँ 'कैकयी' के लिए स्वेच्छा से पत्नी 'सीता' और भाई 'लक्ष्मण' के साथ वनवास गया। एक दिन वे जंगल के रास्ते से जा रहे थे। वे बहुत प्यासे थे। इस तरह वे 'पम्पा सरोवर' (एक तालाब का नाम) के पास पहुँचे। उन्होंने देखा, 'सरोवर' का वातावरण कितना सुंदर है। तालाब के चारों ओर सुंदर फूलों के पेड़ थे। कुछ बतख थे, वे वहां खेल रहे थे, और उनमें से कुछ तालाब का पानी पी रहे थे। तालाब का पानी भी बहुत साफ और शुद्ध था। तो श्री राम ने फैसला किया कि, वे इस तालाब का पानी पिएंगे और पीने के बाद कुछ घंटों के लिए यहाँ आराम करेंगे। इसलिए, राम ने अपने कंधे से धनुष को नीचे उतारा, और धनुष को रेत में घुसा दिया। उस तालाब का पानी पीने के बाद, उन्होंने कुछ घंटों के लिए एक पेड़ के नीचे आराम किया। आराम करने के बाद, जब श्रीराम ने रेत से अपना धनुष उठाया, तो उन्होंने देखा कि उनके धनुष में कुछ खून है। जल्दी से राम ने अपने भाई को बुलाया - "भाई लक्ष्मण, यहाँ जल्दी से आओ, मुझे लगता है कि मेरे द्वारा एक निर्दोष मारा गया", लक्ष्मण तेजी से आए और रेत खोदने लगे। उन्होंने देखा कि एक मेंढक वहां पड़ा था और उसके शरीर पर खून था। इसे देखने के बाद राम की आंखों से आंसू निकल आए। श्री राम ने मेंढक से कहा - "तुमने चिल्लाए क्यों नहीं, जब सांप के द्वारा पकड़े जाते हो, तब तो तुम बहुत चिल्लाते हो । मेंढक ने उत्तर दिया - "हे मेरे स्वामी राम, जब सांप मुझे पकड़ता है, तब मैं यह कहकर चिल्लाता हूं कि - 'राम बचाओ, राम मुझे बचाओ'। लेकिन जब मैं देखा खुद राम ही मुझे मार रहे हैं, तो दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं है जो मुझे बचा सकेगा। यह सोचने के बाद, मैंने नहीं चिल्लाया।

SHABARI

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